बुधवार, 6 अप्रैल 2016

आपातकाल या इमरजेंसी

आपातकाल या इमरजेंसी


  आपातकाल या इमरजेंसी हिंदुस्तान के इतिहास में बुरे दिनों के रूप में याद किया जाता है . कहा जाता है की तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी इलाहाबाद हाई कोर्ट से राजनारायण के खिलाफ चुनाव सम्बन्धी मुक़दमा हार गईं थी सुप्रीम कोर्ट ने मन चाहा आदेश नहीं दिया था . महंगाई दर १० % से भी ज्यादे हो गया था . हार जगह से विरोध के स्वर फूट रहे थे . उस समय तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को लगा जनता के आक्रोश को दबाने के लिए इमरजेंसी घोषित करना अच्छा रास्ता हो सकता है . 25-26 जून की रात १९७५ को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कहने पर आपातकाल की घोषणा अर्ध रात्रि में कर दी जो 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तक लागु रहा . * तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी थी। * स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक समय था। आपातकाल में सभी चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को समाप्त कर दिया गया था। * इसकी जड़ में 1971 में पूर्व में हुए लोकसभा चुनाव था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद राजनारायण ने चुनौती दी थी . चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। * चार साल पश्चात 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे और श्रीमती गांधी के चिरप्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था। निश्चित रूप से यह मर्यादा,लोकतंत्र के सम्मान और शुद्ध राजनितिक आदर्श स्थापित करने का था , लेकिन उन्होंने ने शक्ति दबाने का रास्ता चुना. राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। * अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद श्रीमती गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है। उस समय इंदिरा इज़ इंडिया करनेवालों की वहूतायत थी . * इसी दिन गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरुद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली। इस दोहरी चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं। * इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई। * उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल (इमरजेंसी) की घोषणा कर दी गई है। * आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी। यह ऐसा तर्क था जो सामान्यतया सभी राजनेता जनता को बुद्धू समझकर बोल जाते हैं. इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया। * समाचार पत्रों को एक विशेष आचार संहिता का पालन करने के लिए विवश किया गया, जिसके तहत प्रकाशन के पूर्व सभी समाचारों और लेखों को सरकारी सेंसर से गुजरना पड़ता था। अर्थात तत्कालीन मीडिया पर भी अंकुश लगा दिया गया था। * आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी विरोधी दलों के नेताओं को रातोरात गिरफ्तार करवाकर अज्ञात स्थानों पर रखा गया। सरकार ने मीसा (मैंटीनेन्स ऑफ इंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) के तहत कदम उठाया। * उस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन अपने चरम पर था। कांग्रेस के कुशासन और भ्रष्टाचार से तंग जनता में इंदिरा सरकार इतनी अलोकप्रिय हो चुकी थी कि चारों ओर से उन पर सत्ता छोड़ने का दबाव था, लेकिन सरकार ने इस जनमानस को दबाने के लिए तानाशाही का रास्ता चुना। * 25 जून, 1975 को दिल्ली में हुई विराट रैली में जय प्रकाश नारायण ने पुलिस और सेना के जवानों से आग्रह किया कि शासकों के असंवैधानिक आदेश न मानें। तब जेपी को गिरफ्तार कर लिया गया। और जय प्रकश नारायण ने गिरफ़्तारी के समय कहा था विनाश काले विपरीत बुद्धि * यह ऐसा कानून था जिसके तहत गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट में पेश करने और जमानत मांगने का भी अधिकार नहीं था।


* विपक्षी दलों के सभी बड़े नेताओं मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, जयप्रकाश नारायण और चन्द्रशेखर को भी जेल भेज दिया गया, चन्द्रशेखर जी इन्दिरा कांग्रेस की कार्यकारिणी के निर्वाचित सदस्य थे।

  सभी विरोधी जेल के अंदर डाल दिए गए , विरोध का एक भी स्वर नहीं था . सबलोग इंदिरा गांधी और संजय गांधी की तस्बिर घर , दुकान, ऑफिस में लगाकर अगरबत्ती दिखाते थे. समाचार पत्रों में इनका ही गुणगान, वंदना होती रहती थी . पुरे समाचार पत्र में एक भी निष्पक्छ न्यूज़ नहीं होती थी सभी गुणगान न करनेवाले नेता जेलों डाल दिए गए थे , कुछ भूमिगत हो गए थे . एक घटना जिसने मुझे सर्वाधिक कष्ट पहुंचाया , वह था हमारे इण्टर कालेज के प्रिंसिपल श्री राधे श्याम दिवेदी जिनको कालेज से पुलिस गिरफ्तार करके ले गयी . बच्चों को एवं पुरे शिक्छक समाज को बड़ा दुःख हुआ . कुछ दिनों बाद जब वे छूटकर आये थे तो बता रहे थे उनकी कोई गलती नहीं थी बचपन में शायद वे कभी र सस की शाखा में गए थे ,लेकिन उनको याद नहीं था . उस समय ज्यादतियां भी बहुत हुई ,संजय गांधी की बड़ी चलती थी जबरदस्ती बच्चों तक को पकड़ कर उनकी नसबंदी कर देते थे .बिना टिकट यात्रा करने वालों की भी नसबंदी कर दी जाती थी. सरकारी नौकरी करनेवालों के सामने सरकार का फरमान मानने के सिवाय कोई चारा ही नहीं था. लोगों में इतना भय व्याप्त हो गया था की वे बंद कमरे में भी बात करने डरते थे . कुछ अच्छी बातें भी महसूस की गयी ट्रेनें सब समय से चलती थीं , लेट होने का तो प्रश्न ही नहीं था बेफोर पहुंच जाती थी . राशन की दुकानों पर पूरा राशन उचित दाम ,उचित माप मिलता था .चोरी चमारी का नाम ही मीट गया था . सब कुछ नियम से चलरहा था . परेशानी गलत कार्य करनेवालों को हो रहा था . इमरजेंसी में सब लोग केवल तारीफ करते थे ,क्योकि भयभीत रहते थे की शिकायत न हो जाय. लेकिन जैसे ही आपातकाल हटा चुनाव की घोषणा हुई , सभी गिरफ्तार लोग बाहर आने लगे और सारी राजनितिक पार्टियां मिलकर एक हो गयी …. जनता पार्टी जिसका उदय जेल में ही हो गया था . भारी बहुमत से जनता पार्टी की जीत हुई ,सरकार बनी लेकिन ज्यादे दिन सरकार चल न सकी. खण्ड खण्ड टूट गया ….क्रमशः