सोमवार, 21 मार्च 2016

होली 2016

होली 2016


होली 2016
लहरों से लेकर हिचकोले,पवन से अठखेली
चौखट-चौखट बजा मंजीरे, फिरती अलबेली
कहीं से लाई रंग केसरी, कहीं से कस्तूरी
लाजलजीली हुई कहीं पर खुल कर भी खेली
त्यौहार का अर्थ आपस में मिलकर सामूहिक रूप से खुशियां मनाना है . भारतवर्ष में हजारों वर्ष से लोग होली का त्यौहार मनाते हैं ! होली के त्यौहार की बहुत सी प्रमुखमान्यताये हैं! सबसे पहली तो यह त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन तथा नये मौसम के साथ, अच्छी फ़सल और समृधि के लिए मनाया जाताहैं!
हिन्दू रंगों के साथ नए मौसम का आगमन और ठण्ड के मौसम को विदाई देते हैं!
यह त्यौहार अन्य कई पौराणिक कथाओं से भी जुडी हुई हैं ! यह बहुत ही धार्मिक और आनन्दमय त्योहारों में से एक हैं! होली के एक दिनपहले होलिका जलाई जाती हैं जबकि, होली के दिन रंग और गुलाल से लोग एक दूसरे को लगाकर एकता और प्रेम भाव जताते हैं!
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।
आता है आनंद बहुत ही, होली की ठंडाई में।।
मेरे पिता जी हर साल नया फगुआ गीत लिखते थे .
......होली में मिलते सभी बैर भाव बिसराय......
गाव का माहौल बड़ा ही रोचक हो जाता था . नियमित रूप से फगुआ गीत अलग अलग व्यक्ति के घर होता था .अधिकांश लोग छुट्टी लेकर गाव आ जाते थे . गाव का वातावरण बड़ा ही रोचक और प्रेम मय हो जाता था .
श्री राम छबीला तिवारी होली में गाव अवश्य आते थे , ढोलक की जिम्मेदारी उनकी ही होती थी . उनके अनुज श्री हरी शंकर तिवारी ढोलक की जिम्मेदारी उनकी अनुपस्थिति में सँभाल लेते थे .
बड़ा आनंद आता था , श्री राज किशोर तिवारी जो वाराणसी में श्री शीतल तिवारी के साथ कार्यरत थे प्रत्येक सप्ताह शनिवार को आते ही थे , क्या समय था ,आभाव था लेकिन प्रेम का सागर हमेशा हिलोरें मारता रहता था.श्री रमाशंकर तिवारी बहुत मस्त स्ववभाव के व्यक्ति थे ,परमात्मा ने उन्हें बहुत खूबियों के साथ नवाजा था .क्या समय था ????
होली के दिन भांग बनती थी , सबलोग प्रेम से भांग का पान करते थे , कोई दबाव नहीं होता था सब लोग सबकी क्षमता जानते थे . बाद में चर्चा होती थी किसको किसको चढ़ गया है
-----हँसते हँसते बुरा हाल हाल हो जाता था मालपूवा का सेवन करने से भांग का प्रभाव द्विगुणित हो जाता था .....
श्री काशी नाथ तिवारी ( संत जी ) विशेष आकर्षण होते थे भांग का नशा उनको बहुत चढ़ाता था और ज्ञान का अक्षय्य भंडार खुल जाता, हमलोग जब दरवाजे दरवाजे फ़ाग गानेवाले घूमते थे , संत जी के ज्ञान और नशा का अद्भुत आनंद आता था , होली बीतते बीतते नशा भी उतरने लगता थे .
झूम रहे सब गीतों पर।
डाल रहे रंग मीतों पर।।
कपड़े रंगे, रंगे चौबारे, कुछ जन लगे सफ़ाई में।
होली-सा त्योहार न मिलता, लंदन और शंघाई में।।
श्री राम लक्षण तिवारी विशेष रूप से इस त्यौहार का आनंद उठाते थे , शायद भांग बनवाने की परंपरा का उन्होंने ही शुरू किया था , पहले का पता नहीं ...........
इस त्यौहार पर वे सब लोग याद आ रहे हैं जो अब हमारे बीच नहीं हैं श्री लखन किशोर तिवारी,श्री राम हर्ष तिवारी , श्री राधाकृष्ण तिवारी, श्री रामनरेश तिवारी , श्री राम आसरे तिवारी .............
दिल भर आया अभी अभी सोनू और पार्थेश्वर का हमारे बीच से अचानक निकल जाना ......बहुत दुखद और कष्ट दायक रहा .........
समझ में नहीं आ रहा है ,,,,,,,,दुनिया बनानेवाले काहे को दुनिया बनाई.......

फिर भी संतोष होता है वे सब लोग जो यह होली देखने के लिए हम सब के बीच उपलब्ध हैं ....अपने गाओं का इतिहास लिखने का उत्तरदायित्व युवा पीढ़ी पर है... आने वाली पीढ़ी जब ढुढ़ेगी तो उन्हें जब निराशा हाथ लगेगी .....
मेरे पिताजी श्री अवधेश कुमार तिवारी ने श्री गजाधर तिवारी जी की सहायता से गाव का कुर्सी नामा तैयार किया था .... हम सबका सौभाग्य है की हमारे बुज़ुर्ग श्रद्धेय श्री बाँके बिहारी तिवारी 91 वर्ष की उम्र में भी हमारे ऊपर छत्र की भांति उपस्थित हैं ...इस सुयोग का लाभ उठाया जाय
श्री जनार्दन तिवारी ने काली माई के मंदिर का निर्माण कराकर इतिहास बना दिया , इसके लिए उनके बड़े भ्राता और प्रेरणा स्रोत श्री योगेन्द्र तिवारी का भी अभिनन्दन करता हूँ ...
उन तमाम को नमन है जिन्होंने अपने आशीर्वचनों से सिंचित किया है ....
होली के शुभ अवसर आप सबको बहुत बहुत बढ़ायी,प्रणाम यथायोग्य आशीष शुभ कामना स्वीकार करें....



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