सोमवार, 21 मार्च 2016

परशुराम धाम, सोहनाग ( Parashuramdham Sohnag)

परशुराम धाम, सोहनाग ( Parashuramdham Sohnag)

गुरुरेको जगत्सर्वं ब्रह्मविष्णुशिवात्मकम् |गुरोः परतरं नास्ति तस्मात्संपूजयेद् गुरुम् ||

ब्रह्माविष्णुशिव सहित समग्र जगत गुरुदेव में समाविष्ट है | गुरुदेव से अधिक और कुछ भी नहींहैइसलिए गुरुदेव की पूजा करनी चाहिए | (209)

ज्ञानं विना मुक्तिपदं लभ्यते गुरुभक्तितः |गुरोः समानतो नान्यत् साधनं गुरुमार्गिणाम् ||

गुरुदेव के प्रति (अनन्यभक्ति से ज्ञान के बिना भी मोक्षपद मिलता है | गुरु के मार्ग पर चलनेवालोंके लिए गुरुदेव के समान अन्य कोई साधन नहीं है | (210)


परशुराम धाम सोहनाग

परशुराम धाम ,सोहनाग,तहसील सलेमपुर जनपद   देवरिया ,  उत्तर प्रदेश ,इंडिया

 सोहनाग धाम की कथा भगवान  परशुराम से जुडी हुई है. कहते हैं धनुष यज्ञ के पश्चात परशुराम जी जनकपुर से चल दिए ,सोहनाग आते आते  रात हो गयी सोहनाग में रात्रि में विश्राम किये सुबह पोखरा (सरोवर) में स्नान किये , तपस्या की दृष्टि से सर्वथा उपयुक्त  इस मनोरम स्थान पर कुछ काल निवास किये .

वे  त्रेतायुग में रामावतार के समय शिवजी का धनुष भंग होने पर आकाश-मार्ग द्वारा मिथिलापुरी पहुँच कर प्रथम तो स्वयं को "विश्व-विदित क्षत्रिय कुल द्रोही" बताते हुए "बहुत भाँति तिन्ह आँख दिखाये" और क्रोधान्ध हो "सुनहु राम जेहि शिवधनु तोरा, सहसबाहु सम सो रिपु मोरा" तक कह डाला। तदुपरान्त अपनी शक्ति का संशय मिटते ही वैष्णव धनुष श्रीराम को सौंप दिया और क्षमा याचना करते हुए "अनुचित बहुत कहेउ अज्ञाता, क्षमहु क्षमामन्दिर दोउ भ्राता" तपस्या के निमित्त वन को लौट गये। रामचरित मानस की ये पंक्तियाँ साक्षी हैं- "कह जय जय जय रघुकुलकेतू, भृगुपति गये वनहिं तप हेतू"।

सोहनाग की कथा शुरू होती है जब एक  राजा अपनी सेना एवं सचिवों के साथ गुजर रहा था बड़ी प्यास लगी थी , सचिव ने सोचा यहाँ जंगल के बीच में कुछ पछि मंडरा रहे हैं वहां शायद कोई जल का स्रोत होगा . पानी  मिल गया , पात्र में भरकर जल लाया राजा को दिया.

राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसकी प्यास तो बुझी ही , उस पानी से हाथ धोने के कारन उसका चार्म रोग भी समाप्त हो गया.राजा अपनी सेना के साथ यहीं रुक गए और यह पता करने के लिया की रहस्य क्या है ??
खुदाई शुरू हो गयी ..........भव्य सरोवर तो बन ही गया ,  अत्यंत दुर्लभ मूर्तियां खुदी से प्राप्त हुईं.

खुदाई से प्राप्त वे मूर्तियां इस प्रकार हैं


                                               श्री नारायण श्री



                                 श्री परशुराम  जी

परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक मुनि थे। उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हेंश्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।

मदिर का निर्माण राजा सोहन ने कराया इसीलिए सोहनाग नाम पड़ा . यहाँ एक बड़ा यज्ञ हुआ जिसमें मंत्रो द्वारा आवाहित अग्नि देव को प्रगट होनाथा ,बहुत समय बीतता जा रहा था  , मंत्र पाठ हो ही  रहा था लेकिन अग्नि देव प्रगट नहीं हो रहे थे .

अंततः कुछ लोग मइल देवरहा बाबा के आश्रम गए और निवेदन किये , अग्नि देवता प्रगट नहीं हो रहे हैं . देवरहा बाबा ने कहा आप लोग चलें मैं आता हूँ  उनके पहुंचने के पूर्व ही बाबा आ गए लोगों से पूछे

अग्नि देव प्रगट नहीं हो रहे ????


यज्ञ कुण्ड में हवन की आहुति किये और अग्नि देव प्रगट हो गए आग की लपटें जलती हुई आकाश तक गयी और यज्ञ शुरू हो गया , बाबा अंतर ध्यान हो गए


यहाँ वाराणसी से श्री कमल नयन शुक्ल , वेदाचार्य , जो गुरु जी के नाम से प्रसिद्ध थे , आये और इस तपो भूमि को वेद शिक्षा से और उज्जवल बना दिए . उनके बंशल आज भी उस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं.


 इस ऐतिहासिक स्थान को विकसित करने की आवश्यकता  है . यहाँ पर प्रसिद्द एक्तिजिया का मेला लगता था  जो एक महिले तक चलता था ,जिसमें इस क्षेत्र के लोग बड़े मनोयोग से सम्मिलित होते थे . सलेमपुर,लार,बरहज का थाना व्यवथा में लगा रहता था . बहुत दूर दूर से व्यापारी आते थे और इस मेले में ही लोग शादी के बर्तन,लकड़ी का फर्नीचर ,मसाला, कपड़ा , यहाँ तक की विवाह में आवश्यक सभी सामान की खरीदारी कर लेते थे . हर साल यह मेला बढ़ता जा रहा था . एक साल उपद्रवी तत्वों ने हिंदी मुस्लिम दंगा करा दिया . उसी साल से ये मेला टूट गया .अब मेले की दशा देखकर लोग इतिहास की बात करते हैं .

शिक्षा के क्षेत्र में यहाँ संभावित विकास नहीं हो पाया है . पोखरा भी दयनीय स्थिति में है .जहा सालों साल जल भरा रहता था , पूरा सरोवर कमल के पत्तों और  फूलों से  भरा रहता था , जलाभाव के प्रभाव से  प्रभावित हो गया है .






श्री परशुराम चण्डिका वेद विद्यालय , सोहनाग एवं पौऱणक धाम श्री परशुराम मंदिर ,सोहनाग ,देवरिया ,उत्तर प्रदेश  इस पौराणिक स्थान की महत्ता को द्विगुणित कर देती हैं.

ॐ  जय परशुराम

 https://en.wikipedia.org/wiki/Sohnag,_Salempur

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