मानस रोगी
रामचरिस मानस कल्पना नहीं है, महान इतिहास है . इतिहास पुराने पड़ जाते हैं . इतिहास के पात्र सामने नहीं होते .रामचरिस मानस के पत्रों का समाज प्रत्यक्ष दर्शन करता है, दर्पण की भाति वह नित्य नविन एवं प्रासंगिक है . बहार से कोई व्यक्ति जैसा दिखाई देता है , भीतर से वैसा ही हो ऐसा नहीं है .
व्यक्ति का शरीर जब अस्वस्थ हो हो उपभोग की सारी वस्तुएं उपलब्ध होने पर भी उपयोग नहीं कर पता है बल्कि दुखी रहता है . मन का स्वस्थ्य अति आवश्यक है .
गरुण जी ने ८ प्रश्न भुसुंडि जी किये , अंतिम प्रश्न था
मानस वेग कहहुँ समुझाई
अंत में मानस वेग का प्रश्न क्यों किये ??
होना चाहिए था बीच में आता , वैसे भी मान्यता है मधुरेण समापयेत्
होना चाहिए था बीच में आता , वैसे भी मान्यता है मधुरेण समापयेत्
मानव व्यक्ति के मन की समस्याओं का समाधान करता है . शरीर में तपेदिक हो जाय तो यह देखने की कोशिस करें हमरे मन में तो तपेदिक नहीं हो गया है ??
पर दुःख देखि जरनि सो होई , कुष्ठ दुस्टता मन कुटिलाई
पर दुःख देखि जरनि सो होई , कुष्ठ दुस्टता मन कुटिलाई
मन के रोग की दवा बहुत कठिन है , क्योंकि मन के रोगी को रोग अपने में नहीं सामने वाले दिखाई देता है . दोष हम दूसरे में देखने की कोशिश करतें हैं . ऐसी स्थिति में हमें वैद्य या डाक्टर के पास जाने की आवश्यकता है . दूसरों के दुःख को देखकर हमें अगर आपको कष्ट हो हो रहा है तो किसी डाक्टर से पूछने की आवश्यकता नहीं है . कुछ लोग तो ऐसे होते हैं जिन्हें दूसरे का सुख अच्छा तो नहीं लगता है पर मन मर कर रह जाते हैं . दूसरे प्रकार के रोगी वे हैं इतने से ही हार नहीं जाते बल्कि
बल्कि सामने वाले के सुख को समाप्त कर देने का षड़यंत्र करते रहते हैं . मानस रोगों के सन्दर्भ में यह रोग टीबी के साथ कोढ़ होने जैसा है .
बल्कि सामने वाले के सुख को समाप्त कर देने का षड़यंत्र करते रहते हैं . मानस रोगों के सन्दर्भ में यह रोग टीबी के साथ कोढ़ होने जैसा है .
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