शनिवार, 26 मार्च 2016

दिल बात सच्ची बात



कह  रहीम कैसे निभे बेर केर को संग
वो डोलत रस आपने उनके फारत अंग

बात ह्रदय से विचार करने वाली है .....एक साधारण सा व्यक्ति और एक महान धूर्त , समझ में अंतर तो होगा ही विचार में भी बड़ा अंतर होता है . नौकरी के क्षेत्र में विशेषकर यह परेरशानी    होती है . ईमानदार और परिश्रमी कर्मचारी दिल से और पूरी मेहनत से काम करता है , उसका बॉस केवल गलती ढुढता रहता है . तारीफ करने के बजाय ऐसी टिप्पड़ी कर देता है की उसका ह्रदय विदीर्ण हो जाता है . सोचता है क्या इन्होने कभी कोई गलती नहीं की होगी ? या ये कार्य ये खुद करते तो कैसा करते ? करने वाला कैसे किया जाय  ? यहाँ सोचता रहता है और बोलने वाला क्या बोलेँ की उसको चोट लगे एसोचता रहता है   ?  विशेषकर अगर अधिकारी  काम योग्य हो तो उसका पूरा समय गलती निकलने में ही चला जाता है .योग्य अधिकारी आपने कनिष्ठ सहयोगी को और अच्छा करने के लिए प्यार से समझाता है जो उसके ह्रदय पर अमिट   छप छोड़ देता है .कनिष्ठ सहयोगी अथक परिश्रम करके जो रिपोर्ट तैयार करता है बरिष्ठ अपना कह कर मैनेजमेंट के सामने प्रस्तुत कर देता है और बधाईयां लूट लेता है , उसकी पीठ थप  थथाई जाती है उसे लगता है जब तक ऐसे मुर्ख कार्य करते रहेंगे उस कार्य आपने आप होता रहेगा . शायद यही इस दुनिया में होता है . विशेषकर ांऑर्गनिजेद क्षेत्र में कार्य करने वालों के साथ ऐसा ज्यादे होता है .

सरकारी क्षेत्रों में कार्य करनेवाले इन सम्बेदनाओं से बच जाते हैं मैथिलि शरण गुप्त ने सुन्दर चित्रण किया है

शिक्छे तुम्हारा नाश हो तो तूँ नौकरी के हित बनी

और

जो सुन सकोगे सर झुकाकर अप्सरों की गालियां
तो दे सकेगी शाम को दो रोटियां घरवालियां

क्या किया जाय सत्य बहुत कड़वा होता है और स्वीकारना कठिन .


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